तेरी निगाहों के नूर से दिल मेरा मगरूर था
भरम टूटा तो जाना ये दो पल का सुरूर था
परिंदा दिल का तेरी ख्वाहिश में मचलता रहा
नादां न समझ पाया कभी चाँद बहुत दूर था
एक ख्वाब मासूम सा पलकों से गिरकर टूट गया
अश्कों ने बताया ये बस मेरे दिल का फितूर था
चाहकर भी न मुस्कुरा सके वो दर्द इतना दे गये
जज़्बात हम सम्हाल पाते इतना भी न शऊर था
दिल की हर दुआ में बस उनकी खुशी की चाह की
इतनी शिद्दत से इबादत कर ली यही मेरा कुसूर था
#श्वेता🍁
भरम टूटा तो जाना ये दो पल का सुरूर था
परिंदा दिल का तेरी ख्वाहिश में मचलता रहा
नादां न समझ पाया कभी चाँद बहुत दूर था
एक ख्वाब मासूम सा पलकों से गिरकर टूट गया
अश्कों ने बताया ये बस मेरे दिल का फितूर था
चाहकर भी न मुस्कुरा सके वो दर्द इतना दे गये
जज़्बात हम सम्हाल पाते इतना भी न शऊर था
दिल की हर दुआ में बस उनकी खुशी की चाह की
इतनी शिद्दत से इबादत कर ली यही मेरा कुसूर था
#श्वेता🍁
शुभ संध्या...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
सादर
बहुत बहुत आभार दी आपकी सराहना उत्साह बढ़ाती है दी। हृदय से धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका आदरणीय। मान देने के लिए धन्यवाद महोदय।
जवाब देंहटाएंइबादत की शिद्दत प्रेम का परवान है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है ...