क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूं
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें
वाह...
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
सादर
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जवाब देंहटाएंनमस्ते, आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद " http://halchalwith5links.blogspot.in के 713 वें अंक में गुरूवार 29 -06 -2017 को लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा,आप सादर आमंत्रित हैं।
हटाएंनमस्ते, आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद " http://halchalwith5links.blogspot.in के 713 वें अंक में गुरूवार 29 -06 -2017 को लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा,आप सादर आमंत्रित हैं।
हटाएंवाह्ह्ह...बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंउम्दा ! बहुत ही प्रभावी रचना आदरणीय ,आभार। ''एकलव्य''
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत ही प्रेरक और सुंदर रचना है ---
जवाब देंहटाएंउम्दा।
जवाब देंहटाएंमृत्यु भी सकारात्मक सोच और आशावाद के आगे झुक जाती है.... कम शब्दों में गहरा कथन !
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ।
मृत्यु भी सकारात्मक सोच और आशावाद के आगे झुक जाती है.... कम शब्दों में गहरा कथन !
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ।