ब्लौग सेतु....

25 जून 2017

अरे मीरा...ये कोविन्द है...गोविन्द नहीं....अशोक पुनमिया


कहाँ हो रहा है राष्ट्रपति चुनाव???
ये तो दलित-दलित खेल चल रहा है!
रामनाथ कौविंद आये या मीरा कुमार-क्या फर्क पडना है!
देश के सारे के सारे सियासी दल जात-पात के दलदल में लोट रहे हैं और 2019 के चुनावों पर गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं!
राजनीति की गिरावट मापने का अगर कोई थर्मामीटर बना होता तो निश्चित ही अब तो उसका पारा थर्मामीटर तोड़ कर बाहर आकर आत्महत्या कर चुका होता!
अब तक तो यह कहा जाता था कि राष्ट्रपति मात्र एक रबर स्टेम्प होता है! लेकिन अब ये भी कहा जाएगा कि राष्ट्रपति रबर स्टेम्प के साथ साथ वोटों के लिए एक मोहरा भी है,क्योंकि 56 इंची सीने से लगाकर तमाम पप्पू,अप्पू,लालू,भालू,और सियासत के सारे कालू राष्ट्रपति को मात्र मोहरा बना कर अपनी मूंछों पर ताव दे रहे हैं!
चुनावों के मद्देनज़र सभी नेताओं और दलों के तमाम "विज़न" फेल हो जाते हैं,और उनकी जीभ बस कुर्सी के लिए लपलपाने लग जाती है!
अंग्रेजों से मुक्त हुए भारत के अवाम की तरक्की तब तक संभव नहीं, जब तक कि क्षुद्र राजनीति हिंदमहासागर में डूब कर मर ना जाए!!
- अशोक पुनमिया

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