क्या हुआ जो तेरे पथ में शूल हैं | ||
क्या हुआ जो समय प्रतिकूल है | ||
वक़्त की उलटी हवाओं में | ||
काली और घनघोर घटाओं में | ||
कर्मो की बुनियाद पर | ||
सफलता के महल बनाता चल | ||
मायूसी की काली रातों में | ||
ख़ुशी के दिए जलाता चल | ||
छोटे छोटे लक्ष्य जोड़ कर | ||
विशाल कल का निर्माण कर | ||
सूखे पत्ते आँधियों में उड़ जाते | ||
पर तू चट्टान है, ये मान कर | ||
मंजिल है तेरी महबूबा | ||
कर कोशिश तू उसको पाने की | ||
तेरा हौसला तेरा साथी है | ||
जरुरत नहीं तुझे ज़माने की | ||
वक़्त तेरे साथ है अभी | ||
जीत की आदत तू डाल ले | ||
लक्ष्य को खुदा और | ||
कर्म को
इबादत बना ले
|
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ब्लौग सेतु....
13 फ़रवरी 2017
सफलता की बुनियाद
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - भारत कोकिला से हिन्दी ब्लॉग कोकिला और विश्व रेडियो दिवस में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंछोटे छोटे लक्ष्य जोड़ कर
विशाल कल का निर्माण कर।
प्रेरणादायक रचना।
Thanks All
जवाब देंहटाएंदिनांक 15/02/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुत उम्दा ।।।।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ।।।।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
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