पुस्तक- “ विचार और रस “
में रस पर नवचिन्तन
+ डॉ.ललित सिंह
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विवेचनात्मक निबन्धों की विचारोत्तेजक किन्तु गंभीर चिन्तन से युक्त
रस-चिंतक रमेशराज की कृति “विचार और रस ”, रस को
विचार की कसौटी पर जांचने-परखने के लिए नये सूत्र प्रदान करने वाली एक सफल प्रयास
मानने में मुझे कोई हिचक इसलिए नहीं है क्योकि इस पुस्तक में यह तथ्य पूरे
प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि हर प्रकार के भाव का निर्माण किसी न किसी
विचार से होता है | लेखक की स्पष्ट मान्यता है कि विचार ही भाव के जनक या पिता
होते हैं |
इस पुस्तक में रमेशराज ने अनुभव, अनुभाव और अनुभूति में अंतर स्पष्ट
कर यह बताने का प्रयास किया है कि अनुभाव, भाव के बाद की यदि क्रिया है तो अनुभव
इन सबसे अर्थ ग्रहण कर किसी निष्कर्ष तक पहुँचने का एक प्रक्रम | अनुभव अनेक
प्रकार के होते हैं तो अनुभूति सिर्फ दो ही प्रकार की होती है- दुखात्मक और
सुखात्मक | अनुभाव, अनुभव और अनुभूति के त्रिकोण से लेखक ने साहित्य-सर्जन की जटिल
प्रक्रिया को सहज-सरल बनाने का प्रयास किया है तथा काव्य को रागात्मक-सम्बन्धों की
प्रस्तुति के रूप में रेखांकित किया है | रमेशराज का कहना है-“ काव्य योग की साधना,
सच्चे कवि की वाणी तभी बन सकता है जबकि वह कविता जैसे मूल्य को मानवीय चिन्तन-मनन
की सत्योंमुखी दृष्टि के साथ प्रस्तुत करे |”
प्रस्तुत कृति में ‘ विचार और भाव ‘ तथा ‘ विचार और रस ‘ पर तीन, ‘ विचार संस्कार और रस
’ पर चार निबन्ध हैं | इसके अतिरिक्त ‘ सहृदयता ‘, ‘ विचार और सहृदयता ‘, ‘आस्वादन
‘, ‘ भाव और ऊर्जा ‘, ‘ विचार और ऊर्जा ‘, ‘ काव्य में अलौकिकता ‘, ‘ काव्य में
सत्य शिव और सौन्दर्य ‘ नामक निबन्धों में मौलिक तरीके से चिन्तन कर काव्यानुभूति
को भावानुभूति से ही नहीं विचारानुभूति से जोड़कर रसानुभूति को समझने-समझाने का
उत्तम प्रयास किया है |
रसानुभूति में रसाभास या द्वंद्व की स्थिति को समझाते हुए इसका
समाधान नये रसों की ओर संकेत कर दिया गया है | लेखक की यह भी स्पष्ट मान्यता है कि
काव्य में अलौकिकता जैसा कोई तत्त्व नहीं होता |
वैचारिक एवं भावनात्मक पक्ष पर विशेष बल देते हुए काव्य-सम्वेदना
में सत्य को यथार्थ रूप में स्वीकार कर लेखक स्पष्ट घोषणा करता है _” जो काव्य
सामाजिक को पलायनवादिता या व्यभिचार का विष नहीं देता, वही सत्साहित्य है | कविता
सच्ची कविता तभी है, जबकि वह स्वार्थमय जीवन की विरसता और शुष्कता को समाप्त कर
मानवीय जीवन में चिर और पवित्र सौन्दर्य की स्थापना करती है |”
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आज के भौतिक आपाधापी से भरे युग में
भी रस को काव्य-निकष के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले रस-आचार्यों की कमी नहीं है |
रमेशराज ने रस की निष्पत्ति को विचार या बुद्धि से जोड़कर रस-परम्परा को इस पुस्तक
के माध्यम से जो नये आयाम दिए है, वे चौंकते ही नहीं, आज की वैचारिक काव्य-सामग्री
को समझने-परखने में पूरी तरह सहायक भी हैं | प्राचीन आचार्यों की रस-दृष्टि जिस
प्रकार रसानुभूति का विवेचन करती आ रही है, उस विवेचन के भाव-पक्ष में रमेशराज ने
विचार-पक्ष को जोड़कर नयी कविता में ‘ विरोध ’ और ‘ विद्रोह ‘ रस को स्थापित करने
की एक ईमानदार कोशिश की है | नये स्थायी भाव ‘ आक्रोश ‘ और ‘ असंतोष ‘ का उद्घोष
किया है | जो हर प्रकार स्तुत्य है |
वर्तमान यथार्थवादी कविता को रस के आधार पर समझने में श्री रमेशराज
की पुस्तक “ विचार और रस “ सहायक ही नहीं होगी बल्कि विद्यार्थियों, शोधार्थियों,
काव्य-समीक्षकों और सुधी पाठकों के लिए नवचिन्तन के द्वार खोलेगी, उन्हें एक नयी
ऊर्जा प्रदान करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है |
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डॉ.ललित सिंह, आर. के. पुरम, सासनी गेट, आगरा रोड, अलीगढ़-202001
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