विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकार
हैं रमेशराज
+ज्ञानेंद्र साज़
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श्री रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं | ग़ज़ल के
समानांतर एक नयी विधा तेवरी को स्थापित करने में लम्बे समय से जी-जान से जुटे हैं
| ग़ज़लकारों की अतार्किक हठधर्मिता के चलते अब आपने कथित ग़ज़ल के शिल्प से इतर तेवरी
का जो नया रूप प्रस्तुत किया है, यह रूप तेवरी को ग़ज़ल से बिलकुल अलग ही नहीं करता
बल्कि तेवरी की नयी छंद-व्यवस्था को लेकर बहुत कुछ सोचने-विचारने पर भी मजबूर करता
है | जैसे लम्बी तेवरी की शृंखला में आयी उनकी कृति ‘ घड़ा पाप का भर रहा ‘ में
क्रमशः हर पहली पंक्ति में दोहा छंद और दूसरी पंक्ति में ताटंक छंद का प्रयोग कर
हर तेवर को तैयार किया गया है | तेवर-शतक के रूप में रची गयी एक लम्बी तेवरी का मार्मिक और
रसाद्र रूप इस प्रकार है –
जन-जन की पीड़ा हरे जो दे नवल प्रकाश
जो लाता सबको खुशहाली, उस चिन्तन की मौत न हो |
इसी पुस्तक के अंतिम पृष्ठ पर प्रकाशित “सर्पकुण्डली राज छंद ” पाठक
को झकझोरता ही नहीं, रसविभोर भी करता है | श्री रमेशराज द्वारा ही अन्वेषित इस छंद
में हर पद की आधी-आधी पंक्ति को उठाकर आगे की पंक्ति में रखकर तेवर बनाया गया है |
इन तेवरों का अनुस्यूत रूप एक सम्पूर्ण तेवरी का निर्माण करता है | यह रचनाकर्म
दुरूह अवश्य है किन्तु चित्ताकर्षक और अनुपम है –
अब दे रहे
दिखाई सूखा के
घाव जल में
सूखा के घाव
जल में , जल
के कटाव जल
में |
जल के कटाव
जल में , मछली
तड़प रही हैं
मछली तड़प रही
हैं , मरु का
घिराव जल में
|
मरु का घिराव
जल में , जनता
है जल सरीखी
जनता है जल
सरीखी , थल का
जमाव जल में
|
थल का जमाव
जल में , थल
कर रहा सियासत
थल कर रहा
सियासत , छल का
रचाव जल में
|
छल का रचाव
जल में , जल
नैन बीच सूखा
जल नैन
बीच सूखा , दुःख
का है भाव
जल में |
नूतन
छंदों और एक नये रस “विरोधरस” के अन्वेषक, तेवरी आन्दोलन के पुरोधा श्री रमेशराज
निस्संदेह विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं |
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+ज्ञानेंद्र साज़ ,
सम्पादक-जर्जर कश्ती , १७/२१२ , जयगंज, अलीगढ़-२०२००१ मोबा.-9219562656
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