ब्लौग सेतु....

4 फ़रवरी 2017





रमेशराज के त्योहार एवं अवसरविशेष के बालगीत 
---------------------------------------------------------


|| रावण ||
------------------------
बीस भुजाएं, दस मुख वाला
बड़ा अजब और बड़ा निराला
एक साथ में दस-दस लड्डू
झट खा जाता होगा रावण।

बंद करके पलकें चालीसों
फैला करके बांहें बीसों
दस तकियों पर दस सिर रखकर
झट सो जाता होगा रावण।

बच्चे बूढ़े और युवा हों
बन्द कान सब करते होंगे
भरी सभा में दसों मुखों से
जब चिल्लाता होगा रावण।
+रमेशराज


।। नये साल जी।।
------------------------------
लो फिर आये नये सालजी,
खुशियां लाये नये सालजी।

वर्ष पुराना बीत गया है,
सबको भाये नये सालजी।

स्वागत करने को हम बैठे,
आंख बिछाये नये सालजी।

जाड़े के संग रास रचाते,
तुम तो आये नये सालजी।

बहुत कल्पना सुखद तुम्हारी,
मन बहलाये नये सालजी।

हर सौगात तुम्हारी मन में,
खुशी जगाये नये सालजी।

तुमसे अब हम जाने कितनी
आस लगाये नये सालजी।
+रमेशराज


।। रावण हमें जलाना है।।
--------------------------------
फिर से राम हुए बनवासी,
छायी सब पर आज उदासी

लक्ष्मण के पांवों में छाले,
फिर से समय-चक्र ने डाले।

रावण करता है मनमानी,
छलता सीता को अज्ञानी

हर रावण के अब विरोध में
हमको शोर उठाना है,
रावण हमें जलाना है।

कोई सोये यहां टाट पर,
कोई मखमल और खाट पर।
कोई खाता बालूशाही,
भूख मचाती कहीं तबाही|
कहीं मनाते लोग दीवाली,
कहीं बसी हैं रातें काली|
कैसे भी हो, भेदभाव यह
अब तो हमें मिटाना है,
रावण हमें जलाना है।
+रमेशराज


|| राकेट ||
------------------------------
हुए पटाखे टांय-फिस्स लो
जौहर दिखलाता राकेट।

जमकर धूम-धड़ाके करता
नभ को दहलाता राकेट।

जैसे हो राणा का घोड़ा
चेतक बन जाता राकेट।

दीवाली के दिन संयम में
तनिक न रह पाता राकेट।

फिरकनियां मधुगीत सुनाएं
लेकिन चिल्लाता राकेट।

लाल-हरी आभा फैलाता
नभ को चमकाता राकेट।

दीवाली के दिन अपने घर
हर कोई लाता राकेट।
+रमेशराज


|| रामलीला ||
----------------------
बंदर काका हनुमान थे
बने रामलीला में
दिखा रहे थे वहां दहन के
खुब काम लीला में।

जलती हुई पूंछ से उनकी
छूटा एक पटाखा
चारों खाने चित्त गिर गये
फौरन बंदर काका।

मारे डर के थर-थर कांपे
फिर तो काका बंदर,
साथी-संगी उन्हें ले गए
तुरत मंच से अंदर।
+रमेशराज


|| इक नौटंकी है दीवाली ||
.............................................
रंग-विरंगी पोशाकों में
दीपक कत्थक-नृत्य दिखाते,
नेट और राकेट बांस बिन
नट-से आसमान चढ़ जाते।

देख-देख बारूदी करतब
बच्चे पीट रहे हैं  ताली,
इक नौटंकी है दीवाली।

लो अब आई धूपसरैया
ताक धिनाधिन , ता-ता थइया,

एटमबम का सुन लो डंका,
हनूमान ने फूंकी लंका,

गोली से यूं सांप निकलता
जैसे हो जादू बंगाली,
इक नौटंकी है दीवाली।

नाच-नाच कर धूम-धड़ाके
जगह-जगह कर रहे पटाखे,

फिरकनियां लेती चकफेरे
, अनार मुस्कान बिखेरे।

किसी दैत्य की तरह बमों ने
मुंह से लो आवाज निकाली,
इक नौटंकी है दीवाली।
+रमेशराज


।। होली आयी ।।
---------------------------
हुए गात सब रंग-विरंगे
दीखें गली-गली हुड़दंगे
पिचकारी ने आज सभी पर
देखो कैसी धाक जमायी
होली आयी, होली आयी।

चेहरे सबके ऊदबिलाऊ
कोई बन आया लो हाऊ
कालिख और सफेदा से रंग
सबने सूरत अजब बनायी
होली आयी होली आयी।

ढपली, ढोलक बजते ताशे
ताक धिनाधिन  बच्चे नाचे
गर्दभ राग सुनाकर सबने
कैसी सब संग तान मिलायी?
होली आयी होली आयी।

गली-गली, बस्ती-बस्ती में
हर कोई झूमे मस्ती में
बच्चों के हाथों में पड़ता
नीला-पीला रंग दिखायी
होली आयी, होली आयी।
-रमेशराज


।। पिचकारी ।।
डाले सब पर रंग आजकल पिचकारी,
करती है हुड़दंग आजकल पिचकारी।

सबसे खेल रही देखो हंस-हंस होली,
मन में लिये उमंग आजकल पिचकारी।

धुले हुए कपड़ों की भैया खैर नहीं,
रंग देती अंग-अन्ग आजकल पिचकारी।

इसके होंठों पर हैं केवल शरारतें,
करती कितना तंग आजकल पिचकारी।

किसका वश चलता है अब इसके आगे,
बच्चो के है संग आजकल पिचकारी।

बंदूकों-सी तनी हुई है सभी जगह,
लड़ती जैसे जंग आजकल पिचकारी।

मदहोशी में क्या कर बैठे? मत पूछो,
पी आयी है भंग आजकल पिचकारी।

लाज और मर्यादा सारी तोड़ रही
हुई बहुत बेढंग आजकल पिचकारी।
-रमेशराज


।। दीपावली ।।
-----------------------------
नन्हें-नन्हें दीप जलाती,
घर,आंगन, गलियां चमकाती,
खील, बताशे, मीठा लेकर,
वर्षा के घर कुण्डी देकर,
जगमग करती रातें काली,
लो भइया आयी दीवाली।

टांय-टांय औ, धूमधड़ाके ,
छूट रहे हैं खूब पटाखे,
बारुदी राकेट उड़ रहे,
चाहों ओर सिर्फ खुशहाली,
लो भइया आ गयी दिवाली।
-रमेशराज


।। ऐसे खेलो होली ।।
------------------------------
गहरा रंग प्यार का घोलो
टेसू का रंग फीका।
कपड़े रंगने से क्या होगा
मन हो रंगरँगीला |

सद्भावों का रँग है अच्छा
पिचकारी में ले लो
सबको अपने गले लगाओ,
ऐसे होली खेलो ।

सत्य, अहिंसा की गेंदें हों
सबसे अधिक  रंगीली
रहें हमेशा मन में जिनकी
यादें गीली-गीली।

नफरत की होली से अच्छा
घर की कुन्डी दे लो।
-रमेशराज


।। आया अप्रैल फूल ।।
-----------------------------
हंसिए और हंसाइए, आया अप्रैल फूल
शरारतें कर जाइए, आया अप्रैल फूल।

पूड़ी में ज्यादा नमक, सब्जी भीतर मिर्च
सस्नेह मिलाइए, आया अप्रैल फूल।

हंसकर हर कोई कहे वाह अरे भाई वाह
ऐसे मूड बनाइए, आया अप्रैल फूल।

जिनको लगता हो बुरा, जो चिढ़ते हों मित्र
उनको नहीं सताइए, आया अप्रैल फूल।
-रमेशराज


।। घुड़की वाला दाव ।।
---------------------------
दीवाली पर भालू जी ने
खोली एक दुकान
भरे तुरत आतिशबाजी के
नये-नये सामान |

बीस-बीस के कुल्हड़ बेचे
दस पैसे का बम
पन्द्रह की रंगीन माचिसें
एक न पैसा कम |

बोला बन्दर भालू जी से
करते हो तुम ब्लैक
अभी किसी भी अधिकारी से
करवा दूंगा चैक।

अगर चाहते हो बचना तो
अपने रेट घटाओ,
आटे में बस नमक बराबर
यार मुनाफा खाओ।

भालू ने झट बात समझ कर
घटा दिये सब भाव,
बन्दर जी का घुड़की वाला
काम कर गया दाव।
-रमेशराज



।। लोमड़ी का अप्रैल-फूल।।
-----------------------------
चली खुशी से एक लोमड़ी
अप्रिल फूल मनाने
जंगल के सारे पशुओं पर
अपना रौब जमाने।

शेर समान तुरत चेहरे पर
एक नकाब लगाया
जंगल का राजा बन उसने
बन्दर तुरत डराया।

उसे डराकर थोड़ा आगे
रस्ते पर जब आयी
मस्त चाल में आता उसको
चीता पड़ा दिखायी।

देख उसे झट होश हुए गुम
भागी पूंछ दबाकर
बदहवास-सी शेर-मांद में
घुस बैठी घबराकर।

देख लोमड़ी शेर तुरत ही
मंद-मंद मुसकाया
फिर  लम्बे नाखूनों वाला
पंजा उधर  बढ़ाया।

बोला-मौसी भूख लगी है
आज तुझे मैं खाऊँ  
नये साल का दिन अच्छा यह
अप्रिल-फूल मनाऊँ ।
-रमेशराज


।। फागुन का राग ।।
-------------------------------
फागुन के आते ही शीत गया भाग
सबके अब होठों पर फागुन का राग।

कम्बल रजाई को देकर बनवास
हवा दिखी हर ओर गर्म-गर्म खास

अच्छा नहीं लगती अब हीटर की आग
सबके अब होठों पर फागुन का राग।

चाय और कॉफी का बिगड़ गया स्वाद
बर्फ और चुसकी की आने लगी याद

पौधों  पर रंग-भरे फूल रहे जाग
सबके अब होठों पर फागुन का राग।

बढ़ने लगी मन-बीच होली की चाह
बच्चों ने पकड़ी अब मस्ती की राह

कूक रही कोयलिया आज बाग-बाग
सबके अब होठों पर फागुन के राग।
-रमेशराज


।। आ गयी होली।।
---------------------------------
रंगों की बौछार आ गयी होली
पिचकारी की मार, आ गयी होली।

एक दूसरे के चेहरे को अब बच्चे
पोतें  बारम्बार, आ गयी होली।

टेसू के फूलों से करता हर कोई
अब स्वागत-सत्कार, आ गयी होली।

कपड़े साफ पहनकर मत निकलो भाई
गेंद पड़ें दो-चार, आ गयी होली।

कोई नहीं उदास, हँस रहा हर कोई
मस्ती की भरमार, आ गयी होली।

ढोलक झाँझ मजीरे तबले बाज रहे
रसिया संग सितार, आ गयी होली।

मोटे लाला नाच रहे ताता थइया
लिये तोंद का भार, आ गयी होली।

बच्चे गाने गाते लगते अब जैसे
हुए किशोर कुमार आ गयी होली।

उड़ता रंग-गुलाल, इधर  तो उधर  मिले
छत से जल की धार  आ गयी होली।
-रमेशराज


।। आ गयी होली।।
------------------------------
उड़ता रंग गुलाल, आ गयी होली
बजती ढोलक नाल, आ गयी होली।

पिचकारी ने रंग उलीचा यूं सब पै
सभी हुए बेहाल आ गयी होली।

हुड़दंगों की टोली पड़ती दिखलायी
नाचें दे-दे ताल, आ गयी होली।

चौपाई रसिया गाते अब सब मिलकर
ले तबला खटताल आ गयी होली।

भाँग चढ़ाकर विहँस रहे हैं घंटों  से
अपने प्यारेलाल, आ गयी होली।

चुपके से टेसू का रँग देखो सब पर
डाल रहे गोपाल, आ गयी होली।

धुले  साफ कपड़ों की भइया अब तो
गले न कोई दाल, आ गयी होली।

ब्रज की लिये गुजरिया हाथों में लाठी
लाठी करे कमाल, आ गयी होली।

हर कोई मस्ती में कितना झूम रहा
आज न पूछो हाल, आ गयी होली।
-रमेशराज


।। अप्रिल-फूल।।
-------------------------------
लो फिर  आया अप्रिल-फूल
सब को भाया अप्रिल-फूल।

हँसी ठहाके शरारतें
संग में  लाया अप्रिल-फूल।

हमने बंटी बबलू को
आज बनाया अप्रिल-फूल।

अब तो सबके अधरों  पर
केवल पाया अप्रिल-फूल।

सोच-सोच ये सब हैं खुश
खूब मनाया अप्रिल-फूल।

बुरा न मानो हमने जो
मजा चखाया, अप्रिल फूल।
-रमेशराज


।। दीवाली आयी ।।
------------------------------
नन्हें हाथों में फुलझडियाँ
मुस्कायें दीपों की लड़ियाँ
आसमान पर जाकर अब तो
रॉकेटों ने धूम मचायी
लो भइया दीवाली आयी।।

गली-गली में आज पटाखे
करते जमकर धूम-धड़ाके
सूं-सूं,-सूं-सू रेल चली तो
खूब बमों ने धूम  मचायी।
लो भइया दीवाली आयी।

अँधियारा अब डरकर भागा
इतना आज उजाला जागा
रामू काका की झोली में
खील-बड़े बताशे पड़े दिखायी
लो भइया दीवाली आयी।

फिरकनियों  ने नाच दिखाया
सबको मधु  संगीत सुनाया
रंगों का फव्वारा छोड़ा
देखो वो अनार ने भाई
लो भइया दीवाली आई।
-रमेशराज


।। झूले।।
-----------------------
सबको खूब झुलाते झूले
आया सावन गाते झूले।

आते जिस दिन तीज-सनूने
उत्सव खूब मनाते झूले।

लम्बी-लम्बी लगा छलाँगें
आसमान छू आते झूले।

बन जाते राणा के चेतक
जब भी पैंग बढ़ाते झूले।

आम-नीम की हरी डाल पर
बलखाते-इठलाते झूले।

चाहे जो भी इन पर झूले
सबसे प्यार जताते झूले।

उतना होते दुल्लर-तिल्लर
जितना हमें झुलाते झूले।

मन करता झूलें हम हरदम
मन को इतना भाते झूले।
-रमेशराज

------------------------------------------------------------
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630     


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...