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24 फ़रवरी 2017




“बुलंदप्रभा” में आलोकित तेवरीकार रमेशराज   

+डॉ. अभिनेष शर्मा
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    साहित्यिक पत्रिका “बुलंदप्रभा” का जुलाई-सितम्बर-2015 अंक तेवरीकार रमेशराज जी के साहित्य-सृजन को समेटकर शोभायमान है | इस अंक में तेवरीकार श्री रमेशराज ने  अपनी बात को स्पष्टरूप से रखकर साहित्याकाश में अपना स्थान और दैदीप्तमान कर लिया है |
    कविता को हर कवि अपने ही अंदाज में सजाता है, संवारता है और उसे गुनगुनाने का मौका देता है | तभी तो कविता सभी रसों में डूबकर इठलाती है और गद्य से ऊपर तरजीह पाती है | कभी कविता यथार्थ की वैतरणी पार करती है तो कभी विद्रोह की आग सुलगाती है | कभी जन की दुखाद्र पुकार सुनकर करुणरस में घनीभूत होती है तो कभी सौन्दर्य की अनुपम छटा बिखेरती है |
    तेवरी में अलग ही रस के दर्शन होते हैं और वह है-“विरोधरस” | हर तेवरीकार इसी रस को अपने-अपने दृष्टिकोण से शब्दांकित करने का अथक प्रयास करता है | तेवरीकार रमेशराज भी इस प्रयास में शत-प्रतिशत खरे उतरते हैं | उनका हर तेवरी-संग्रह विरोधरस में ओजस है | अलीगढ़ को तेवरी से  पहचान दिलाने वाले इस संघर्षशील व्यक्तित्व का हार्दिक धन्यवाद | धन्यवाद “ बुलंदप्रभा” के सम्पादकमंडल का भी जिसने साहित्य-मनीषी रमेशराज और उनके साहित्य पर आधारित अंक निकालकर साहित्य-जगत में उनकी रचनाधर्मिता खासतौर पर तेवरी और उनके द्वारा अन्वेषित  “ विरोधरस “ को विचार-विमर्श हेतु विद्वजनों के  सम्मुख रखा |
     आमजन की स्थिति आज जिस आक्रोश और बौखलाहट की विस्फोटक अवस्था में है, उसे शब्दों का पहनावा तेवरी के रूप में मिलता है | तेवरी के अतिरिक्त बुलंदप्रभा के इस अंक में श्री रमेशराज द्वारा रचित अन्य विधाएं जैसे ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहे, कुंडलिया, कहानी, लेख आदि को भी स्थान मिला है | इसके अतिरिक्त अनेक साहित्यकारों के रमेशराज के व्यक्तित्व और कृतित्व से संदर्भित आलेख हैं | उनसे जुड़े साहित्यकारों ने भी उनके अंदर के व्यक्ति से मुलाकात कराने में इन आलेखों में कोई कोताही नहीं बरती है | उनसे जितना जिसने पाया है, इन आलेखों में उसे सूद सहित लौटाया है |      बुलंदप्रभा के इस अंक से गुजरते हुए यह स्पष्टरूप से कहा जा सकता है कि रमेशराज जी को हर विधा में महारत हासिल है | हर विषय की गहरायी तक जाकर मन के उद्गारों को शब्दों में ढालने की कला की कसौटी पर आप पूरी तरह खरे उतरते हैं |
    अंक की महत्वपूर्ण उपलब्धि है श्री रमेशराज द्वारा अन्वेषित एक नए रस “विरोधरस ” की प्रस्तुति | विरोधरस के संचारी, स्थायी भाव, अनुभाव पर विस्तृत चर्चा की गयी है | साथ ही इस रस के रूप व प्रकार भी सूक्ष्मता के साथ समझाये गये हैं | सम्भवतः श्री राज ने तेवरी काव्य में रस की समस्या को हल करने के उद्देश्य से विरोधरस की साहित्य में स्थापना की है |
    तेवरी में चूंकि जन की पीड़ित दमित भावनाएं परिलक्षित होती हैं अतः इस विधा में बहने वाले आक्रोश और विरोध को हर आस्वादक ऐसे महसूस करता है जैसे उसके मन की ही बात की जा रही हो | अगर यह आम धारणा है कि क्रोध अँधा होता है , राज जी ने विरोधरस के माध्यम से इसी क्रोध को आँखें और कान प्रदान करते हुए बताया है कि विरोध हिंसा का पर्याय नहीं | अनीति और हिंसा का प्रतिरोधात्म्क स्वरूप विरोध है | एक तेवरीकार शब्दों को आक्रोश के साथ विरोधरस में डुबोकर ऐसे प्रस्तुत करता है कि उसकी तेवरी हर अनीति के प्रति असहमति जताने लगती है |
    रमेशराज का साहित्य अनेक पुष्पों से सजा सुवासित आलय है जिसे ‘ बुलंदप्रभा’ ने और बुलंदियों तक पहुँचाने का सत्प्रयास किया है |
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डॉ.अभिनेष शर्मा, देव हॉस्पिटल, खिरनी गेट , अलीगढ़

मोबा.-9837503132   

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