' मधु-सा ला ' चतुष्पदी
शतक [ भाग-4 ]
+रमेशराज
------------------------------------------
चतुष्पदी--------76.
आज हुआ साकार किसतरह सपना आजादी वाला,
आजादी के जनक पी रहे आज गुलामी की हाला।
सारे नेता बन बैठे हैं अंग्रेजों की संतानें,
तभी विदेशी खोल रहे है यहाँ स्वदेशी मधुशाला।।
---रमेशराज
चतुष्पदी--------77.
सारे नैतिक आचरणों का निकल चुका है दीवाला
आज खुदकुशी कर बैठा है शुभ-सच्ची
नीयतवाला।
हर गाथा जो प्यार-भरी
थी अहंकार में गुंजित है
अब केवल वाहक हिंसा की जिसको कहते मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------78.
तर्क हमारे पास शेष है अब केवल शंका वाला
सदभावों ने ओढ़ लिया है अति कटुता का दोशाला।
इस युग का हर बोध कर रहा नैतिकता का शीलहरण
जनहित की हर एक भंगिमा बनी हुई है मधुशाला।।
+रमेशराज
चतुष्पदी--------79.
पीते हो नेताजी केवल अब तो तुम छल की हाला
बड़े-बड़े
पूंजीपति सारे आज तुम्हारे हमप्याला।
चोर-डकैत-असुर-छिनरों
को राजनीति में साथ लिये
धन्य तुम्हारी छलमय बातें,
धन्य तुम्हारी मधुशाला।।
---रमेशराज
चतुष्पदी--------80.
सभी दलों की देखी हमने राजनीति अब तक आला
मधुबाला सँग ‘रेप’
किया तो कहीं तोड़ डाला प्याला।
धृतराष्ट्रों की अंध सियासत अब न चले,
ऐसा कुछ हो
केवल लाये मधु की गाथा राजनीति की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------81
कथित ध्रर्म की कहीं बँटी है मद से भरी हुई हाला
कोई बैठा जाति-पाँति
का लेकर अब यारो प्याला।
कोई कहता मधुबाला हो केवल अपने सूबे की
नये दौर में पाप खड़ा है लेकर सच की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------82.
राजनीति के अधरों पर हो यदि केवल सच का प्याला
नैतिकता के साथ जियेगा सत्य-शहद
पीने वाला।
मिटे कलुषता, पशुता
भागे, नेक एक माहौल बने
श्रीमान पी.एम.
महोदय यदि सच्ची हो मधुशाला।।
--रमेशराज
चतुष्पदी--------83.
हो विद्युत-आपूर्ति
निरंतर लगे न धंधों पर ताला,
नये साल में खुशी मनायें निर्धन के बालक-बाला।
भगें विदेशी बाँध बिस्तरा,
कारोबार स्वदेशी हों
बाला-हाला-प्याला
अपना, अपनी ही हो मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------84.
हर नेता के हाथों में हो आदर्शों का अब प्याला
हर कोई पीये जीवन में नैतिकता की ही हाला।
देश-निकाला
अपराधों को,
मजबूरी को न्याय मिले
सिर्फ प्यार का चलन बढ़ाये अब भारत में मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------85.
नौकशाह राह पर आयें, करें
न कोई घोटाला
मार न पाये अब खुशियों को आँधी-वर्षा
या पाला।
बन जाये उत्तम ये भारत श्रीमान पी.एम.
सुनो
रंग उकेरे अब संसद से नव विकास के मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------86.
विद्या-धन
को पाकर खुश हो हर निर्धन की अब बाला
मन में हो उत्साह पिता के सुता-स्वप्न
जिसने पाला।
यदि कन्या पढ़-लिख
जाये तो कल हो अपने पाँव खड़ी
महकाओ पी.एम.
महोदय सुता-ब्याह की
मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------87.
तब सपना सच हो भारत का मिटे यहाँ से तम काला
ड्रैस पहनकर सब कन्याएँ जाने लगें पाठशाला।
केवल चौके तक ही सीमित रहें न मन की इच्छाएँ
कन्याओं-हित
अब शिक्षा के रंग बिखेरे मधुशाला।।
- रमेशराज
चतुष्पदी--------88.
नेक रहे यदि नौकरशाही,
कम तोलेगा क्यों लाला,
यदि राजा ईमानदार तो कैसे होगा घोटाला।
शासन और प्रशासन समझे अपने कर्तव्यों को यदि
कच्ची दारू पिला-पिला
कर हो न कलंकित मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------89.
दुःख के बदले खुशहाली का हर दिन हो चर्चा वाला,
शासन और प्रशासन केवल लिये न्याय का हों प्याला।
कारोबारों से मंदी का अब यारो ये दौर थमे
निर्धन भी अब तो मुस्काये पा विकास की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------90.
बम रखकर बस्ती में जिसने कण-कण
खूँ से रँग डाला
जिसने नाम धर्म का लेकर बाँटी नफरत की हाला।
वह कारा में जब आया तो यारो एक कमाल हुआ
जेलर साहब ने खुलवा दी उसकी खातिर मधुशाला।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------91.
रिश्वत और कमीशन खाकर जिसके घर आती हाला,
चारा-तोप-कफन-चीनी
में जो करते हैं घोटाला।
उनको ही पन्द्रह अगस्त पर हैं झण्डे फहराने को
उनकी ही खातिर है अब तो आज़ादी की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------92.
जनम-जनम
की प्यासी जनता पीये खुशियों की हाला
जन-जन
के हो हाथ-हाथ में
मधु से भरा हुआ प्याला।
रंग प्यार नूतन बहार के दिखें सुलगती धरती पर
एक निराली रंगत वाली अब अपनी हो मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------93.
और खुशी के ऊपर कोई नहीं उकेरे रँग काला
सद्नीयत-सच्चे
विचार की केवल खुलें पाठशाला।
सच का प्याला, हाला
सच की अधर-अधर को
महँकाये
खोल सको तो ऐसी खोलो मोदीजी तुम मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------94.
दूध-दही
को और न तरसें भारत के ग्वालिन-ग्वाला
अधर -अधर
से लगा हुआ हो खुशहाली का नव प्याला।
नव विकास की गति-सम्मति
हो, शासन केवल शुभ सोचे,
अदालतों में ‘जज’
महँकायें सिर्फ न्याय की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------95.
हिन्दी में कुछ बैठे गये हैं लेकर अंग्रेजी-प्याला
शर्बत-लस्सी
छोड़ पी रहे खूब विदेशों की हाला।
भारत में ये बने इण्डियन मैकाले के पुत्र दिखें
रहन-सहन
में अलग दिखें ये लेकर मद की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------96.
भ्रष्टाचार निकाल रहा है अब जनता का दीवाला
हर नेता पूंजीपतियों की पिये आज जमकर हाला
जनता चाहें
सिस्टम बदले शोषण-मुक्त
समाज बने
पक्ष-विपक्ष
सभी को खटके लोकपाल की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------97.
पक्ष-विपक्ष
सभी के नेता कर बैठे हैं मुँह काला
‘टूजी’
से भी बढ़कर निकला बड़ा कोयला घोटाला।
हर आवंटन बीच कमीशन, जन
के धन की लूट दिखे
भ्रष्ट व्यवस्था की पोषक है नेताजी की मधुशाला।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------98.
जन सेवक का ढोंग रचाकर पी प्यारे यूँ ही हाला
तू नेता है शर्म-हया
क्यों, भोग रोज सुन्दर बाला।
संविधान का निर्माता तू,
संविधान से रह ऊपर
और खोल बेशर्म देश में ब्लू फिल्मों की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------99.
नयी नीतियों का अब सूरज उलग रहा सब कुछ काला
कहे केजरीवाल देश में घूम रहा उल्लू साला।
आज दबंग रंग दिखलाते लूट मचाते हर बस्ती,
खूब रास आयी असुरों को अन्धकार की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------100.
मन की खुशी रंज में डूबी,
जीवन ज्यों टूटा प्याला
जन के हिस्से में आयी है विषकन्या-सी
मधुबाला।
सब पीकर शासन का विषरस नित रोये-बेहाल
हुए
रहे जहाँ भी आज मिली है बस द्वंद्वों की मधुशाला।।
-रमेशराज
चतुष्पदी--------101.
सत्ता नहीं व्यवस्था बदले,
राग मिले मधुस्वर वाला
पड़े नहीं खुशियों के दर पर और यही ग़म का ताला।
सबके हिस्से मुस्कानें हों,
टूटे हर शोषण का क्रम
नयी भोर हो, लगें
ठहाके, रहे न तम की मधुशाला।।
-----------------------------------------------------------------
+रमेशराज, 15/ 109, ईसानगर , निकट-थाना सासनीगेट ,
अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...