तन्हाइयों की तलाश या किसी कसक की आहट ग़ज़ल इश्क़ या खुद से तार्रुफ़
ज़माने ने कोशिश बहुत की उड़ाने की
हम वो परिंदे थे जो पिंजरे में बंद थे
कभी तो गुजारिश नवाजिश से महकेगी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है
हम वो परिंदे थे जो पिंजरे में बंद थे
कभी तो गुजारिश नवाजिश से महकेगी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है
पन्ना तो आज भी है ज़िन्दगी का लेकिन
कुछ झुर्रियों की धूल जमा है जिल्द पर
कभी तो नियामत होगी इस स्याह खत पर भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
कुछ झुर्रियों की धूल जमा है जिल्द पर
कभी तो नियामत होगी इस स्याह खत पर भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
दिल से निकली थी कसक जिसकी तलाश में
उम्मीद थी उसे कि मुख़्तार (chosen one) जो मिले
कभी तो तार्रुफ़ (introduction) होगा चमन से माली का
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
उम्मीद थी उसे कि मुख़्तार (chosen one) जो मिले
कभी तो तार्रुफ़ (introduction) होगा चमन से माली का
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
चलते चले हैं जा रहे बेवजह रास्तों पर हम
पत्थर मिले या फूल सब कुछ क़ुबूल है
कभी तो हमसफ़र मिलेगा मेरी तन्हाइयों को भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
पत्थर मिले या फूल सब कुछ क़ुबूल है
कभी तो हमसफ़र मिलेगा मेरी तन्हाइयों को भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
चिपके हुए हैं सांप दुनियां की नज़र के
नज़रें गड़ाए हैं सभी गिद्धों के हमशकल
कभी तो छाओं आएगी हमारे वज़ूद पर भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
नज़रें गड़ाए हैं सभी गिद्धों के हमशकल
कभी तो छाओं आएगी हमारे वज़ूद पर भी
वरना ज़िन्दगी तनहा तो कट ही रही है ॥
Too gud
जवाब देंहटाएंआभार एवं धन्यवाद् जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी. आपके बहुमूल्य समय अवाम प्रदत्त अवसर के लिए.
हटाएंआभार शास्त्री जी. आपके द्वारा प्रदत्त सुअवसर के लिए
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