लम्बे समय से वेंटिलेटर पर रखे ,
एक बेजान से रिश्ते को ,
आखिरकार मिल ही गई मुक्ति !
चलो अच्छा हुआ ;
अब किस्तों में मिल रही ,
हर पल की मौत
का ना तो कोई खौफ़ रहा
और ना ही ,
बाकि रही कोई आस जीवन की ....
लम्हा -दर-लम्हा ,
पिघलते जा रहे मोम से ज़ज्बातों को ,
अब किसी बाती से ना होगा
फिर कभी इश्क !
सुना था मैंने ;
गंभीर संक्रमण की चपेट में आने से ,
रिश्ता हो या हो इंसान !
दोनों का ही बच पाना
हो जाता है थोड़ा मुश्किल ,
नीम -हकीम , पीर -पैगम्बर
अपनी- अपनी तरह से करते हैं लाख जतन ,
दिलाते हैं भरोसा नई उम्मींदों का ...
पर हर रोज़ हज़ार फौत के
साये में पल रहे रिश्ते को
ज़रूरत आन पड़ती है -
कभी ना कभी ;
इच्छामृत्यु की !!
हाँ ..... हाँ ,
मैंने उस नासूर बन चुके आदत को ,
दे दिया आखिर धीमे से विष !
निकल दिया श्वास-नलिका से भीतर
जा रहे ऑक्सीजन के पाइप को ...
मुक्त कर दिया
रुग्ण भावनाओं से सिक्त ज्वार के आवेग को ...
क्यूंकि
मुझे लगता है -
दुनिया का सबसे बड़ा
और
मुश्किल काम होता है ,
खुद को समझाना ...
और देखो
मैंने ये काम भी आज बखूबी कर ही लिया ...
समझ चुकी हूँ पूरी तरह से
कि - अब तुमको गए
बहुत वक़्त बीत चुका है
लेखक परिचय -- Anu Chakraborty
फेसबुक वाल से अनु जी की एक बेहतरीन रचना आज सभी के साथ साँझा कर रहा हूँ...........उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगी !
-- संजय भास्कर
सत्य बिलकुल सत्य....
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंजीवन के गहरे कटु सत्य को शब्दों में लिखा है ... बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंअनु जी सुन्दर कविता साझा करने हेतु धन्यवाद संजय जी ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसूंदर रचना
जवाब देंहटाएंसूंदर रचना
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