यशोदा दीदी को आभार...आपने हमें यहां आमंत्रित किया
बैठी थी आज
लिखने को कुछ
पर जो कुछ
कहता था मन मेरा
और कलम मेरी
लिखती ही नही..
मेरे मन की बात
करती थी मनमानी
कलम मेरी..
और तो और..
उँगलियाँ मेरी..
करते करते टाईप
बहक-बहक सी
जाती थी..
झिड़कने पर
कहती थी उँगलिया..
जो मेरे मन में आ रही..
जा रही उसी अक्षर पर..
तुझे क्या..
रहना सुधारते..
बाद टाईप होने के..
करने दे टाईप मुझे ..
मेरे मन की...
छोड़ दी थक-हारकर
आधा अधूरा..
बोली अपने आप से...
चलूँ दीदी के पास...
आज दिन तीसरा है
मातारानी का...
कर आऊँ दर्शन दीदी के.....
वो भी तो माँ है मेरी..
-दिव्या
दिनांक 12/12/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
वाह ... मन की बात लिखिंहै यहाँ
जवाब देंहटाएंजिन्होंने वात्सल्य से सींचा हो उनकी ममता में माँ के ही दर्शन होते हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह.. बहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ख़ूब ! कश्मकश के बीच राह तलाशते भावों को मंज़िल मिल ही जाती है। सुन्दर रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं दिव्या जी। लिखते रहिये। लिखते समय दिल की सुनिए शब्दों में भावात्मकता स्वतः लिपट जाएगी और सन्देश भी ...
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