मुझे आज इतना दिलासा बहुत है..
कि उसने कभी मुझको चाहा बहुत है ;
उसी की कहानी उसी की हैं नज़्में...
उसी को ग़ज़ल में उतारा बहुत है ;
बड़ी सादगी से किया नाम मेरे...
तभी दिल मुझे उसका प्यारा बहुत है ;
उठाओ न ख़ंजर मेरे क़त्ल को तुम...
मुझे तो नज़र का इशारा बहुत है ;
किसी और से कोई पहचान क्या हो...
सितमगर वही एक भाया बहुत है ;
सिवा उसके कोई नहीं आज मेरा....
वही दर वही इक ठिकाना बहुत है ;
गले तो मिले दिल मिलाते नहीं हैं...
ज़माने में यारों दिखावा बहुत है ;
निग़ाहें मिलाते अगर सिर्फ़ हम से...
यक़ीनन ये कहते भरोसा बहुत है ;
ज़माने का आख़िर भरोसा ही क्या है....
फ़क़त इक तुम्हारा सहारा बहुत है ;
लुटाए हुए आज बैठी हूँ ख़ुद को ..
मुहब्बत करो तो ख़सारा बहुत है ;
तुम्हें पा लिया है ज़माना गंवा कर..
मेरे वास्ते ये असासा बहुत है ;
कड़ी धूप का है ज़माना ये ‘तरुणा’...
मुझे उसकी पलकों का साया बहुत है...!!
-'तरुणा'..!!!
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