सिकत नाव चलाता हूँ
किससे कहूँ क्या छिपाउँ
सब कुछ अब बेपरदा है
लव सिले हैं वदन मौन है
क्यों आगोश में जलजला है?
डूब रही है कश्ती मेरी
खींच रहा भँवर इस कदर
क्या मिट जाएगी हस्ती मेरी?
मैंने तो गुलसिताँ सजाया था सपनों का
तेरे आँसुओं के सैलाब में
क्यों उजड रही है बस्ती मेरी?
पैगंबर के पैगाम को
ताउम्र निभाने का वादा था
हमराही माना था तुझको
क्या गुनाह बस इतना था?
खुदानाम का
खौफ दिखाकर
रोका तुझको
बिलख बिलख कर
पर तू मस्त कुरंग सी
बगिया मेरी बंजर करने
आई गर्वित सज्जित होकर
म्रत्युदूत के संग सी
अब मैं बस पछताता हूँ
रोकना चाहता हूं तुझको
जलताडन मैं करता हूँ
सलिल अग्नि से
भय खाकर अब
सिकत नाव चलाता हूँ
-डॉ. विमल किशोर ढौंडियाल
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