मुक्तक विन्यास में रमेशराज की तेवरी
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दिखायी दे सूखा हर ओर
झील के भीतर नहीं हिलोर |
कहीं अब रही न कोयल कूक
नृत्य को तरस रहा है मोर ||
अँधेरा पकड़ रहा है जोर
नहीं अब किसी रात की भोर |
हृदय के भीतर गम का वास
दर्द से भरी आज हर पोर ||
लम्पटों ने घेरा हर छोर
सिपाही बन बैठा है चोर |
सियासत नहीं ‘चाँद’ का रूप
न ऐसे हो मदहोश चकोर ||
+रमेशराज
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