ब्लौग सेतु....

8 दिसंबर 2017



मुक्तक विन्यास  में रमेशराज की तेवरी
----------------------------------------------------
दिखायी दे सूखा हर ओर
झील के भीतर नहीं हिलोर |
कहीं अब रही न कोयल कूक
नृत्य को तरस रहा है मोर ||

अँधेरा पकड़ रहा है जोर
नहीं अब किसी रात की भोर |
हृदय के भीतर गम का वास
दर्द से भरी आज हर पोर ||

लम्पटों ने घेरा हर छोर
सिपाही बन बैठा है चोर |
सियासत नहीं ‘चाँद’ का रूप
न ऐसे हो मदहोश चकोर ||

+रमेशराज   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...