ब्लौग सेतु....

1 दिसंबर 2017

एक नाज़ुक-सा फूल गुलाब का ...




हूँ  मैं  एक  नाज़ुक-सा  फूल 
घेरे रहते हैं मुझे नुकीले शूल 

कोई तोड़ता पुष्पासन से 
कोई तोड़ता बस पंखुड़ी 
पुष्पवृंत से तोड़ता कोई 
कोई मारता बेरहम छड़ी  

कोई देता  है अपने महबूब को तोड़कर 
बिछा देता है कोई कुपात्र के क़दमों पर 
अर्पित  करता  है  कोई  ईष्ट  के  सर 
बिलखता हूँ मैं भी किसी के मरने पर। 

मिट जाता हूँ ख़ुशी-ख़ुशी बेहिचक औरों की ख़ुशी के लिए 
बनता है इत्र गुलकंद गुलाब-जल ज़माने की ख़ुशी के लिए 

मन-मस्तिष्क,नज़र और दिल 
सब पर मेरा ही राज  है 
मकरंद मेरा मधुमख्खियों को 
लगता मधुर साज़ है

ले जाती हैं वे बूंद-बूंद
क़रीने से एक छत्ता बनाने 
शहद की मधुरिम मिठास 
मतलबी संसार को चखाने   

छत्ते का मधुमय मोम  Lipstick में मिलकर 
खेलता है अठखेलियां गोरी के गुलाबी लबों पर 

भीनी ख़ुशबू में तर-बतर  होकर 
मीठे बोल फ़ज़ाओं में अदब से उतरते हैं 
आबोहवा की मधुर सदायें सुन लगता है 
समाज को जैसे  होंठों से फूल झरते हैं 


आशिक़-महबूबा की गुफ़्तुगू सुनता हूँ 
गुलशन में इश्क़ के सौदे रोज़ बुनता  हूँ 

शर्म-ओ-हया ,यकीं ,वफ़ा , इक़रार सब ज़िक्र हुए 
रेशमी मरमरी ख़्वाबों के चर्चे सरेआम बेफ़िक्र हुए 

अकेला आता कोई दिलजला 
तब  महसूसता हूँ धधकते शोलों की तपन
दिल की बाज़ी हारकर 
सुना जाता है अपने सीने की चुभन-जलन  

तितलियाँ,ततैया,भँवरे,मधुमख्खियाँ,कीट-पतंगे आते रहते मुझसे मिलने 
होंगे इनके अपने  मक़सद  संपन्न होता है परागण पीढ़ियां संसार में बढ़ने 

मृत्यु के भय से परे औरों के लिए मुस्कराते हैं फूल 
मुरझाने की नियति से कदापि नहीं घबराते हैं फूल 

ज़माना माने तो माने उन्हें बेवफ़ा 
मैं कैसे मानूँ  उन्हें अलग-थलग 
Break up के बाद तन्हा आये 
मज़बूरियाँ  बताने अलग-अलग 
वफ़ा का चराग़ रहेगा रौशन 
देखी  है  मैंने  उन आँखों में  
Purity  Of  Emotion!

#रवीन्द्र सिंह यादव 


शब्दार्थ / WORD MEANINGS 

नाज़ुक = अत्यंत कोमल,विनम्र,विनीत / DELICATE
शूल = काँटा ,कंटक / THORN 

पुष्पासन = फूल का निचला भाग जहाँ सभी भाग इससे जुड़े होते हैं इस  पर टिककर फूल खिलता /  RECEPTACLE 

पुष्पवृंत = डंठल जिससे फूल और डाली जुड़े होते हैं / STALK OF A  FLOWER 

पंखुड़ी = पाँख ,दल / PEPAL 

छड़ी =  STICK 

इत्र = ख़ुशबूदार तरल / PERFUME, ESSENCE , SCENT 

गुलकंद = सूखे गुलाब की पंखुड़ियों को पानी में शक्कर के साथ गर्म करके बना  मिठासभरा गाढ़ा उत्पाद  / CONSERVE OF ROSE PETALS

मकरंद = पराग / NECTOR 

मोम= मधुमख्खियों  के छत्ते का सम्पूर्ण स्पंजनुमा भाग जोकि उत्कृष्ट गुणवत्ता की लिप स्टिक बनाने में उपयोगी है / NATURAL WAX 

परागण (POLLINATION ) = फूलों में प्रजनन की प्रक्रिया जिसमें STAMEN (POLLEN GRAINS ) को एक फूल से दूसरे फूल या उसी फूल में STIGMA तक  पहुँचाने में कीट-पतंगों ,तितलियों आदि का महत्वपूर्ण योगदान होता है।  


लिपस्टिक (Lipstick ) = एक सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद जोकि अधरों की सुंदरता में नयनाभिराम आकर्षण उत्पन्न कर सके।  इसमें नमी बरक़रार रखने वाले तत्व , तेल , मोम (Wax) और रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।  वास्तव में इस उत्पाद में सभी तत्व नैसर्गिक (Natural ) होने चाहिए ( यहां उल्लेखनीय है शहद के छत्ते से प्राप्त मोम / WAX  का लिपस्टिक बनाने में  प्रयोग ) किन्तु आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमें अब इतना भी भान नहीं है कि बाज़ार ने इसमें कौन-कौन से हानिकारक रसायन मिला दिए हैं जिसका खामियाज़ा सीधा ग़रीब वर्ग उठाता है क्योंकि प्राकृतिक तत्वों के साथ तैयार की हुई लिपस्टिक ख़रीदने की उसकी हैसियत नहीं है लेकिन इस शौक को भी पूरा करना है तो बाज़ार ने सस्ता से सस्ता हानिकारक विकल्प उपलब्ध करा दिया है।  

हमारी मानसिकता भी अरबों के व्यवसाय का आधार बन जाती है। 

मेक अप ( Make up ) अर्थात क्षतिपूर्ति।  जो कमी है उसे पूरा किया जाना।  फ़ैशन का क्रम ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है।  पहले इसे आभिजात्य वर्ग अपनाता है फिर समाज में नीचे की ओर इसका अंधानुकरण फैलता चला जाता है। 


लब (Lip ) = होंठ , ओष्ठ , अधर 

प्राकृतिक रूप से स्वस्थ  होंठों का रंग गुलाबी ही होता है ख़ून की कमी के कारण या अन्य कारणों से इनका रंग काला या नीला भी देखा जाता है।  आजकल फ़ैशन का ऐसा रंग चढ़ा है कि बाज़ार ने मानसिकता पर कब्ज़ा कर लिया है और लिपस्टिक  काले , हरे और न जाने कितने रंगों में उपलब्ध होकर अधरों पर सज रही है; परिधान के रंगों से मैच करती हुई। 

श्रृंगार रस के कवियों ने अधरों का वर्णन करने में कोई कोताही नहीं की है। गीतकार राजेंद्र कृष्ण जी ने   फ़िल्म शहनाई के  एक गीत   "न झटको ज़ुल्फ़ से पानी" .......  में पढ़िए कितनी कलात्मकता प्रदर्शित की है।  आगे ख़ूबसूरत प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए कहा है -
 "ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ.....
   ज़रा  इनको   अलग  कर  दो  तरन्नुम  फूट  जाएंगे।" 


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सूंदर,
    बहुत बढ़िया
    क्या कहूँ शब्द नहीं है
    गुलाब को देख कर
    गुलाब के मोल बढ़ा दिये आपने
    ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा दिये आपने

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-12-2017) को "दिसम्बर लाता है नया साल" (चर्चा अंक-2806) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आदरणीय /आदरणीया आपको अवगत कराते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि हिंदी ब्लॉग जगत के 'सशक्त रचनाकार' विशेषांक एवं 'पाठकों की पसंद' हेतु 'पांच लिंकों का आनंद' में सोमवार ०४ दिसंबर २०१७ की प्रस्तुति में आप सभी आमंत्रित हैं । अतः आपसे अनुरोध है ब्लॉग पर अवश्य पधारें। .................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  4. बहुत खूब ...
    फूल के मन और प्रेमी की आकांक्षा ....
    एक गुलाब ही तो है ... दर्द और सुख का मजा देता है ...

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 06 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. ले जाती हैं वे बूंद-बूंद
    क़रीने से एक छत्ता बनाने
    शहद की मधुरिम मिठास
    मतलबी संसार को चखाने

    आदरणीय रविंद्र जी सर्वप्रथम इन विशेष पंक्तियों हेतु सादर नमन। आपकी कविताओं में वो बात है शायद आजकल के रचनाकारों में यदा -कदा देखने को मिलती है। आलोचनाओं को झेलने
    की क़ाबिलियत जो आप में है और किसी में कम ही देखी जा रही है। नमन आपको

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  7. बहुत सुंदर और अपनी विशिष्ट पहचान लिए है रचना। फूल की आत्मकथा गद्य रूप में कई बार पढ़ी है। आपने फूल की आत्मकथा को मनमोहक पद्य शैली में प्रस्तुत कर रचना को अनोखा बना दिया। हार्दिक बधाई ।

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  8. गुलाब के फूल की सुगन्ध सी बहुत ही खूबसूरत रचना....पुष्प की उपयोगिता से लेकर उसकी आत्मकथा तक .....बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति....
    वाह!!!

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