मुक्तक विन्यास में रमेशराज की तेवरी
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अजब है अपना हिंदुस्तान
यहाँ जनता की सस्ती जान |
सिसकता गली-गली सदभाव
खून के प्यासे पंडित-खान ||
किया नारी का यूँ सम्मान
‘रेप’ को आतुर हर शैतान |
असुर को लोग रहे हैं पूज
देश है अपना बड़ा महान ||
देश में दीख रहा उत्थान
करें हम कौवों का गुणगान |
भा रहा हमको गर्दभ-राग
बेसुरी अच्छी लगती तान |
+रमेशराज
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