तुमने सही को
गलत कहा,
गलत को सही, कहना पड़ा
मुझे भी वही,
शब्द को दी नहीं, अर्थ की सहमति
संस्कारों ने दी नहीं
मुँह खोलने की अनुमति
हर बार बहस की स्थिति से बचती रही
और सच्ची भावनाओं के आसपास
पाँव दबा चलती रही।
झगड़े की आशंका
अनेक सच्चाइयों को
कर देती है मौन
झूठ को
सब जानते हैं पर झूठ से लड़े कौन?
दुनिया की पंचायत में
हर बार प्रश्न यही रहा
और मौन के परिणाम को
हम सबने सहा।
डॉ. शैलजा सक्सेना
गलत कहा,
गलत को सही, कहना पड़ा
मुझे भी वही,
शब्द को दी नहीं, अर्थ की सहमति
संस्कारों ने दी नहीं
मुँह खोलने की अनुमति
हर बार बहस की स्थिति से बचती रही
और सच्ची भावनाओं के आसपास
पाँव दबा चलती रही।
झगड़े की आशंका
अनेक सच्चाइयों को
कर देती है मौन
झूठ को
सब जानते हैं पर झूठ से लड़े कौन?
दुनिया की पंचायत में
हर बार प्रश्न यही रहा
और मौन के परिणाम को
हम सबने सहा।
डॉ. शैलजा सक्सेना
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर....
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