| न भूले तुम , न भूले हम | |||
| मोहब्बत किसी की न थी कम | |||
| दुनिया के झूठे रीति - रिवाजो ने | |||
| धर्म से निकले अल्फाजों ने | |||
| इस जहाँ से हमें मिटा दिया | |||
| उसे दफनाया, मुझे जला दिया | |||
| जिंदगी की बेवफाई समझ में आई | |||
| दी जाती जहाँ धर्मो की दुहाई | |||
| अजीब है दुनिया का कायदा | |||
| खुदा भी बांटा आधा आधा | |||
| लेकिन हम मर कर भी जिन्दा है | |||
| खुले आस्मां के आज़ाद परिंदा है | |||
| जहाँ एक धरती एक है आसमान | |||
| नहीं जहाँ धर्मो के हैं निशान | |||
| मस्जिद भी मेरी मंदिर भी मेरा | |||
| अब हर घर पर है अपना बसेरा | |||
| खुश हैं इस दुनिया अंजान में | |||
| नहीं उलझता कोई गीता -कुरान में | |||
| सुर नहीं था जीवन के तरानों में | |||
| अपनापन मिला जाकर बेगानो में | |||
| बादलों के बीच लगता फेरा अपना | |||
| हर सांझ अपनी हर सवेरा अपना | |||
| अब न कोई गम, न कोई सितम | |||
| नयी दुनिया का एक ही नियम | |||
| न भूले तुम , न भूले हम | |||
| मोहब्बत किसी की न थी कम | |||
| हितेश कुमार शर्मा | |||
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16 दिसंबर 2017
नयी दुनिया
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बहुत ही सुंदर....
जवाब देंहटाएंआभार आप का....
धन्यवाद जी
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआपकी रचना पढ़कर, उसके भाव जानकर अपनी ही लिखी दो पंक्तियाँ याद हो आईं सर--
जवाब देंहटाएं"काश ! मैं इक पंछी होता, उड़ता मुक्त गगन में मैं !
सारे सपने पूरे करता, जो भी रखता मन में मैं !!
धन्यवाद एवं आभार
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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