| दिलों में बनी सरहद को अब मिटाना होगा | ||||
| पानी होते खून को फिर खून बनाना होगा | ||||
| मोहब्बत के लफ्ज जो नफरत की परिभाषा बने | ||||
| उन्ही लफ्जों को अब अमन की माला में पिरोना होगा | ||||
| वतन की मिटटी की खुशबु कहीं खो सी रही है | ||||
| उसी मिटटी का तिलक अब सबके माथे पर लगाना होगा | ||||
| धुंआ-धुंआ होती दिवाली बहुत मना चुके अब | ||||
| मोहब्बत का दीया हर दिल में जलाना होगा | ||||
| गैरों के लिए अपनों को बहुत ठोकर मार ली | ||||
| बिछुड़े हुओं को फिर पलकों पर बिठाना होगा | ||||
| जलवों से जिनके रोशन हैं हिन्द की सरहदें | ||||
| अमन और भाईचारे से मुल्क का कर्ज चुकाना होगा | ||||
| वक़्त के पहिये में हर कोई यहाँ कुचला गया हितेश | ||||
| वरना मोहब्बत के जहाँ में नफरत का कहाँ ठिकाना होगा | ||||
कविता मंच प्रत्येक कवि अथवा नयी पुरानी कविता का स्वागत करता है . इस ब्लॉग का उदेश्य नये कवियों को प्रोत्साहन व अच्छी कविताओं का संग्रहण करना है. यह सामूहिक
ब्लॉग है . पर, कविता उसके रचनाकार के नाम के साथ ही प्रकाशित होनी चाहिये. इस मंच का रचनाकार बनने के लिये नीचे दिये संपर्क प्रारूप का प्रयोग करें,
ब्लौग सेतु....
22 अक्टूबर 2016
दिलों की सरहद
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (24-10-2016) के चर्चा मंच "हारती रही हर युग में सीता" (चर्चा अंक-2505) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'