ब्लौग सेतु....

15 दिसंबर 2017

सरगम बनकर आजा सजनी.....के.एल. स्वामी ‘केशव’

सरगम बनकर आजा सजनी
मन-मृदंग बजा जा सजनी ....


मैं मयूर बन करूँगा नर्तन
होगा तन-मन सावन-सावन
उमड़-घुमड़कर बन घटा सी
रिमझिम करती छा जा सजनी
सरगम बनकर आजा सजनी
मन-मृदंग बजा जा सजनी ....


कह ले अपनी, सुन ले मेरी
सुख-सपनें या पीर घनेरी
बाँटेंगे मिलकर के दोनों
हाल-ए-दिल सुना जा सजनी
सरगम बनकर आजा सजनी
मन-मृदंग बजा जा सजनी ....


मैं आवारा बादल जैसा
फिरूँ भटकता पागल जैसा
एक ठिकाना दे-दे मुझको
घर-अँगना बसा जा सजनी
सरगम बनकर आजा सजनी
मन-मृदंग बजा जा सजनी ....


फूलों की माला-सा जीवन
इमरत-सा, हाला-सा जीवन
जो कुछ है, होने से तेरे
होजा मेरी, ना जा सजनी
सरगम बनकर आजा सजनी
मन-मृदंग बजा जा सजनी ....

-© के.एल. स्वामी ‘केशव’

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर....
    आभार सर आप का....

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत-बहुत धन्यवाद महोदय ! नमन......

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...