ब्लौग सेतु....

7 दिसंबर 2017

एक (गीत)----डॉ. राज़ बुन्देली

मैं बंजारा मैं बंजारा-2 ।।
तुम्ही बता दो,कहाँ सँभालूँ,इतना सारा प्यार तुम्हारा ।।
मैं बंजारा मैं बंजारा-2 ।।

डगर डगर में फिरना ही मैं,लिखा भाग्य में लाया हूँ,
भटकन की परिभाषा समझो,मैं भटकन की छाया हूँ,
चलता रहा अकेला पथ पर,पीछे मुड़कर नहीं निहारा ।।(1)
मैं बंजारा मैं बंजारा-2.............

जीवन की आपा-धापी में,भूल चुका हूँ परिभाषा,
शब्द शब्द को सँजो रही है,नई किरण की अभिलाषा,
आज नहीं तो कल निकलेगा,प्राची से नूतन उजियारा ।। (2)
मैं बंजारा मैं बंजारा-2.............

इस जग को देखा है मैनें,वन्दन करते सुविधा का,
हर गर्दन पर कसा हुआ इक,बन्धन देखा दुविधा का,
लोभ तुम्हारा बना खड़ा है,चौराहे पर काल तुम्हारा ।।(3)
मैं बंजारा मैं बंजारा-2.............

सुविधाओं के अनुच्छेद सब,तुमनें अपनें नाम लिखे,
स्वर्णासन पर आसित रहकर,तुमनें नीचे काम लिखे,
तुम महलों के कनक कलश हो,मैं हूँ गलियों का हरकारा ।।(4)
मैं बंजारा मैं बंजारा-2.............
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डॉ. राज़ बुन्देली
(मुम्बई)
facebook से साभार

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