रमेशराज के मुक्तक
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1.
“असुर ” कहो या बोलो-“ खल हैं “
हम मल होकर भी निर्मल हैं |
साथ तुम्हारे ‘ सच ‘ होगा पर-
अपने साथ न्यूज-चैनल हैं ||
+रमेशराज
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2.
जटा रखाकर आया है, नवतिलक लगाकर आया है
मालाएं-पीले वस्त्र पहन, तन भस्म सजाकर
आया है
जग के बीच जटायू सुन फिर से होगा भारी
क्रन्दन
सीता के सम्मुख फिर रावण झोली फैलाकर
आया है |
+रमेशराज
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3.
गाली देते प्रातः देखे, संध्याएँ
पत्थरबाज़ मिलीं
ईसा-सी, गौतम-गाँधी-सी संज्ञाएँ
पत्थरबाज़ मिलीं |
कटुवचन-भरा, विषवमन भरा भाषा के भीतर
प्रेम मिला
अब सारी चैन-अमन वाली कविताएँ पत्थरबाज़
मिलीं |
+रमेशराज
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4.
हम शीश झुकाना भूल गये
सम्मान जताना भूल गये,
तेज़ाब डालते नारी पर
अब प्यार निभाना भूल गये |
+रमेशराज
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5.
ये टाट हमेशा हारेंगे चादर-कालीनें
जीतेंगे
तू सबको रोज नचाएगा तेरी ये बीनें
जीतेंगी |
तू सबसे बड़ा खिलाड़ी है इस भ्रम में
प्यारे मत जीना
ये सफल हमेशा चाल न हो , मत सोच मशीनें
जीतेंगी ||
+रमेशराज
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6.
बस यही फैसला अच्छा है
मद-मर्दन खल का अच्छा है |
जो इज्जत लूटे नारी की
फांसी पर लटका अच्छा है ||
+रमेशराज
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7.
सब हिस्से के इतवार गये
त्यौहार गये सुख-सार गये,
हम मोहरे बने सियासत के
वे जीत गये हम हार गये
+रमेशराज
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8.
मिलता नहीं पेट-भर भोजन अब आधी आबादी
को
नयी गुलामी जकड़ रही है जन-जन की आज़ादी
को |
भारत की जनता की चीख़ें इन्हें सुनायी
कम देतीं
हिन्दुस्तानी चैनल सारे ढूंढ रहे
बगदादी को ||
+रमेशराज
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9.
पेड़ों से बौर छीन लेगा
खुशियों का दौर छीन लेगा |
हम यूं ही गर खामोश रहे
वो मुँह का कौर छीन लेगा ||
+रमेशराज
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10.
केसरिया बौछार मुबारक
होली का त्यौहार मुबारक |
जो न लड़ा जनता की खातिर
उस विपक्ष को हार मुबारक ||
+रमेशराज
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रमेशराज, 15/109 ईसा नगर, अलीगढ़-२०२००१
मो.-९६३४५५१६३०