लोकशैली में एक तेवरी
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सडकों पै मारपिटाई करते बर्बर आतताई
होते सरेआम उत्पात दरोगा ठाड़ो देखै |
हाथों में छुरी तमंचे जन को लूट रहे नित गुंडे
गोदें चाहे जिसका गात दरोगा ठाड़ो देखै |
गलियों में खड़े लफंगे ताकें नारीतन को नंगे
अब है चीरहरण दिनरात दरोगा ठाड़ो देखै |
देती है आग दिखाई बस्ती को फूंकें दंगाई
धर्म पै अति हिंसक जज़्बात दरोगा ठाड़ो देखै |
+रमेशराज
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