हज़ल
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बोलै मति
हमकूँ ठलुआ,
हमतौ चाकी
के गलुआ।
प्रेम-बाँसुरी
बजा रहे हम
हमकूँ
कहियो मत कलुआ ।
बूँद-बूँद यूँ
दिन-भर टपकें
नैना सरकारी
नलुआ।
साली मुस्का
ऐसे बोली
जीजा तुम
रहे रहलुआ ।
द्यौरानी
भी यार जेठ को
होली पै
बोलै ‘ललुआ’।
+ रमेशराज
+
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