ब्लौग सेतु....

7 मई 2017

उस से हमें क्या ( व्यंग)

अपने खून से करते जो वतन की 
हिफाजत तो उस से  हमें  क्या 
मिलती तुम्हे गोली  ,पत्थरों  से 
क़यामत तो उस  से  हमें  क्या 
झेली होगी तुमने जो दुश्मन की  
गोलियां  अपने  सीने  पर 
कहते  होंगे  कोई  उसे  भी 
शहादत तो उस  से  हमें  क्या 
देशप्रेम का जज्बा अगर तुम्हारे 
अंदर  बे  वजह   भरा  यूँ ही 
आपका परिवार देता है इसकी 
इज़्ज़ाजत तो उस से हमें  क्या 
अपना खुदा तो मंदिर मस्जिद 
में कहीं छिपा बैठा  है कोने में
वतन की हिफाजत को तुम कहते हो 
इब्बादत तो उस से हमें  क्या 
अपनी  नई  नवेली  दुल्हन के  
हसींन  अरमानो   की  जगह 
तुम ने   अगर  वतन  से  है  
मोहब्बत तो उसे  से  हमें  क्या 
तुम्हारी  जान  की  कीमत  कोई 
चुका    सका  इस  ज़माने  में 
अगर  इस  बात  से  तुम्हे  है  
शिकायत तो  उस  से  हमें  क्या 
वतन की मिटटी को अपने खून से 
सींच  कर  तुम  विदा  हुए  जो 
होगी तुम्हारी अर्थी पर फूलों की 
सजावट तो उस  से  हमें  क्या 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय, सुन्दर रचना ! ,"सत्यता के पट खोलती ,चंद शब्दों में बोलती देश की हालत" आभार। "एकलव्य"

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