|| तेवरी ||
बुझते सपनों को मिल साथी कुछ तो दो आकर नया
नव निर्माण चाहता भारत माँग रहा आधार नया |
नाम धर्म का ले भारत में जाने कितनी जान गईं
नफरत को दो प्रीति –रीति का श्रीमान संसार नया |
भेद मिटें सब जात-पांत के प्रान्तवाद के स्वर टूटें
और न कर बैठे अरि हम पर सोच-समझकर वार नया |
बहुत झुलस ली भोली जनता भेद-भाव की आतिश में
और न रख जाये भेदों का अब दुश्मन अंगार नया |
‘उत्तर ‘ यदि होगा ‘उत्तम ‘ तो जय-जयकार सुनायी दे
श्रीमान जनता को भाए सत्ता का अभिसार नया |
+रमेशराज
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