रमेशराज के प्रेमपरक दोहे
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तुमसे
अभिधा व्यंजना तुम रति-लक्षण-सार
हर
उपमान प्रतीक में प्रिये तुम्हारा प्यार |
+रमेशराज
+मंद-मंद
मुसकान में सहमति का अनुप्रास
जीवन-भर
यूं ही मिले यह रति का अनुप्रास |
+रमेशराज
तुमसे
कविता में यमक तुमसे आता श्लेष
तुमसे
उपमाएं मधुर तुम रति का परिवेश |
+रमेशराज
तुमसे
मिलकर यूं लगे एक नहीं हर बार
सूरज
की पहली किरण प्रिये तुम्हारा प्यार |
+रमेशराज
गहरे
तम के बीच में तुम प्रातः का ओज
तुमसे
ही खिलता प्रिये मन के बीच सरोज |
+रमेशराज
नयन
कमल से किन्तु हैं उनके वाण अचूक
बोल
तुम्हारे यूं लगें ज्यों कोयल की कूक |
+रमेशराज
और
चलाओ मत प्रिये यूं नैनों के वाण
होने
को है ये हृदय अब मानो निष्प्राण |
+रमेशराज
तुम
प्रत्यय-उपसर्ग-सी तुम ही संधि-समास
शब्द-शब्द
वक्रोक्ति की तुमसे बढ़े मिठास |
+रमेशराज
तुम
लोकोक्ति-मुहावरा तुम शब्दों की शक्ति
तुमसे
गूंगी वेदना पा जाती अभिव्यक्ति |
+रमेशराज
चन्दन
बीच सुगंध तुम पुष्पों में बहुरंग
हर
पल चंदा से दिपें प्रिये तुम्हारे अंग |
+रमेशराज
छा
जाता आलोक-सा मन के चारों ओर
गहरे
तम के बीच प्रिय तुम करती हो भोर |
+रमेशराज
कमल
खिलें, कलियाँ हंसें तुम वो सुखद प्रभात
तुम्हें
देख जल से भरें सूखे हुए प्रपात |
+रमेशराज
तन
में कम्पन की लहर प्रिये उठे हर बार
तुमको
छूकर ये लगे तुम बिजली का तार |
+रमेशराज
तुम
सावन का गीत हो झूला और मल्हार
रिमझिम-रिमझिम
बरसता प्रिये तुम्हारा प्यार |
+रमेशराज
प्रिये
तुम्हें लखि मन खिला, मौन हुआ वाचाल
कुंदन-काया
कामिनी कल दो करो निहाल |
+रमेशराज
तू
ही तो रति-भाव है, यति गति लय तुक छंद
प्रिय
तेरे कारण बसा कविता में मकरंद |
+रमेशराज
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Rameshraj, 15/109, Isanagar, Aligarh-202001
Mo.-9634551630
सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर
हटाएंबहुत ही खूब....
जवाब देंहटाएंआभार सर आप का....
हार्दिक आभार सर
जवाब देंहटाएं