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18 मई 2017

रमेशराज के 10 मुक्तक




रमेशराज के मुक्तक 
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1.
“असुर ” कहो या बोलो-“ खल हैं “
हम मल होकर भी निर्मल हैं |
साथ तुम्हारे ‘ सच ‘ होगा पर-
अपने साथ न्यूज-चैनल हैं ||
+रमेशराज
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2.
जटा रखाकर आया है, नवतिलक लगाकर आया है
मालाएं-पीले वस्त्र पहन, तन भस्म सजाकर आया है
जग के बीच जटायू सुन फिर से होगा भारी क्रन्दन  
सीता के सम्मुख फिर रावण झोली फैलाकर आया है |
+रमेशराज

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3.
गाली देते प्रातः देखे, संध्याएँ पत्थरबाज़ मिलीं
ईसा-सी, गौतम-गाँधी-सी संज्ञाएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
कटुवचन-भरा, विषवमन भरा भाषा के भीतर प्रेम मिला
अब सारी चैन-अमन वाली कविताएँ पत्थरबाज़ मिलीं |
+रमेशराज     

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4. 
हम शीश झुकाना भूल गये
सम्मान जताना भूल गये,
तेज़ाब डालते नारी पर
अब प्यार निभाना भूल गये |
+रमेशराज 

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5.
ये टाट हमेशा हारेंगे चादर-कालीनें जीतेंगे
तू सबको रोज नचाएगा तेरी ये बीनें जीतेंगी |
तू सबसे बड़ा खिलाड़ी है इस भ्रम में प्यारे मत जीना
ये सफल हमेशा चाल न हो , मत सोच मशीनें जीतेंगी ||
+रमेशराज

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6.
बस यही फैसला अच्छा है
मद-मर्दन खल का अच्छा है |
जो इज्जत लूटे नारी की
फांसी पर लटका अच्छा है ||
+रमेशराज


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7.
सब हिस्से के इतवार गये
त्यौहार गये सुख-सार गये,
हम मोहरे बने सियासत के 
वे जीत गये हम हार गये
+रमेशराज 
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8.
मिलता नहीं पेट-भर भोजन अब आधी आबादी को
नयी गुलामी जकड़ रही है जन-जन की आज़ादी को |
भारत की जनता की चीख़ें इन्हें सुनायी कम देतीं
हिन्दुस्तानी चैनल सारे ढूंढ रहे बगदादी को ||
+रमेशराज
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9.
पेड़ों से बौर छीन लेगा
खुशियों का दौर छीन लेगा |
हम यूं ही गर खामोश रहे
वो मुँह का कौर छीन लेगा ||
+रमेशराज 


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10.
केसरिया बौछार मुबारक
होली का त्यौहार मुबारक |
जो न लड़ा जनता की खातिर
उस विपक्ष को हार मुबारक ||
+रमेशराज


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रमेशराज, 15/109 ईसा नगर, अलीगढ़-२०२००१ 
मो.-९६३४५५१६३०   

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